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ऐ… सुनो अरे… सुन तो लो आई…..आई लव यू एसे मुकर के मत जाओ.. अरे.. सुन लो यार | बेशक यह अंश पढ़कर सभी लोग यह तो समझ ही गए होंगे कि यह एक किसी लड़की के प्यार में दीवाने एक लड़के द्वारा कहे वही साधारण से बोल हैं जो प्रत्येक नवयुवक एक लड़की से प्यार का इजहार करने में इस्तेमाल करता है,इन चंद शब्दों के पीछे उसका मुख्य उदेश्य लड़की का अपने प्रति रुझान जानना होता है,इन कुछ शब्दों से उस लड़के को एक लड़की का सात्विक या नकारात्मक उत्तर मिल जाता है| उत्तर सात्विक हुआ तो वह मारे ख़ुशी के फूला नहीं समाता है, और वहीँ दूसरी ओर नकारात्मक जबाब मिलने पर वह मायूस और उदास हो कर उसे भुलाने की कोशिश करने में जुट जाता है, लेकिन इन्हीं में से कुछ दीवानों को लड़की का यह इंकार अपनी प्रतिष्ठा और गरिमा को ठेस पहुंचता हुआ प्रतीत होता है, और यहीं से उस दीवाने के दैत्य बनने का सिलसिला शुरू होता है, यह बात उसके दिलो दिमाग में इतनी गहरी छाप छोड़ती है, वह दिन प्रतिदिन उसकी शक्शियत मिटा देने के बारे में सोचने लगता है,धीरे धीरे यह छाप मानसिक विकृति का रूप ले लेती है, और फिर होता है, एक और एसिड अटैक यानी की एक तरफ़ा प्यार का एक भयंकर परिणाम जो अब देश के कोने कोने में अपनी जड़े जमा रहा है, पुलिस महकमे में मौजूद रिकार्ड के अनुसार इस तरह के सौ में से चौरानवे मामले महिलाओं व् युवतियों पर हमले के है और लगभग सभी मामलों में एक तरफा प्यार के चलते उनके चेहरे या बदन को तेजाब से जलाने जैसी घटनाएँ सामने आती है जो कि एक बहुत चिंतात्मक विषय है, इन हैवानो को एसी क्रूरता करते जरा भी देर नहीं लगती | ये यह भूल जाते है कि उनका चंद लम्हों का पागलपन किसी हँसते खेलते मासूम को बदनामी और गुमनामी के अँधेरे में ढकेल देगा | अपने लम्बी आयु की और दुनियां में कुछ बनकर कर दिखाने की कामना करने वाली वह मासूम जिंदिगी अपनी मौत की कामना करने लगती है,तेजाब के हमले से घायल एक लड़की का दिल शायद यही बाते उस दीवाने से यही पूंछता होगा, “ चलो फेंक दिया सो फेंक दिया अब कसूर भी बता दो मेरा..तुम्हारा इजहार था मेरा इंकार था बस इतनी बात पर तुमने चेहरा जला दिया मेरा. गलती शायद मेरी थी मै तुम्हारा प्यार देख न सकी, मैं अब अपनी गलती मानती हूँ. क्या… अब मुझे अपनाओगे तुम… क्या अब भी मेरे चेहरे को प्यार से देखोगे…जिसकी पलके और गाल जल चुके है. अच्छा! एक बात तो बताओ ये ख्याल ‘तेजाब’ का कहाँ से आया..क्या तुम्हे बताया किसी ने?.. या तुम्हारे जेहन में खुद ही आया? अब कैसा महसूस करते हो मुझे जलाकर? गौर्वांकित या फिर पहले से ज्यादा मर्दाना “| शायद एसा ही कुछ सवाल उन पीड़ित लडकियों के दिल से निकलते हैं…मैंने तो बस उस पीड़ा को शब्दों में बयाँ करने की कोशिश की है, महिलाओं एवं युवतियों के लिए लगातार भयावह होती जा रही इस दुनिया के बारे में गंभीरता से विमर्श होना चाहिये क्योंकि आज की सबसे बडी चिंता यह है कि कानून की सख्ती के बावजूद अपराधी इस कदर बेलगाम क्यों हुये जा रहे हैं और ऐसी घटनाओं को बार-बार दोहराया क्यों जा रहा है ? सड़क पर उतर आई युवाओं की भीड़ हममें जनांदोलन का जज्बा पैदा करती है पर हर उम्मीद ऐसे हादसों में दम तोड़ती नजर आती है.
शुभम वाजपेयी
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